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Showing posts from July, 2025

#27. अपने जीवन का अर्थ: हम स्वयं गढ़ते हैं

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नमस्ते दोस्तों, आज एक ऐसे गहरे विचार पर बात करते हैं जो हमें अपनी ज़िंदगी को एक नई दृष्टि से देखने का मौका देता है: जीवन का कोई पूर्वनिर्धारित अर्थ नहीं है, आप ही इसे अर्थ देते हैं। जीवन का अर्थ वही है जो आप इसे देते हैं। जीवित रहना ही अपने आप में अर्थ है। यह बात शायद थोड़ी अमूर्त (abstract) लग सकती है, लेकिन यह बहुत शक्तिशाली है। मैं सोचता था कि ज़िंदगी का कोई बड़ा, छुपा हुआ मक़सद होगा जिसे हमें खोजना है। मैं सोचता था कि 'मुझे अपनी ज़िंदगी का मक़सद ढूंढना है' या 'जब मुझे मेरी ज़िंदगी का अर्थ मिल जाएगा, तभी मैं खुश हो पाऊँगा।' लेकिन शायद ज़िंदगी कोई रहस्यमयी पहेली नहीं है जिसका कोई एक ही, तयशुदा जवाब हो। ज़िंदगी एक खाली कैनवस की तरह है, और हम ही वो कलाकार हैं जो उस पर रंग भरते हैं। इसका अर्थ कहीं बाहर नहीं है, बल्कि हमारे अंदर है, हमारी पसंद, हमारे कर्मों और हमारे अनुभवों में है। जीवित रहना ही अपने आप में एक अद्भुत अवसर है, और इसी अवसर को हम जो अर्थ देते हैं, वही हमारी ज़िंदगी का अर्थ बन जाता है। अर्थ की तलाश नहीं, अर्थ का निर्माण अगर आप अपने आस-पास देखेंगे, तो पाएंगे क...

#26. शिक्षा: सिर्फ़ ज्ञान नहीं, बदलाव की प्रेरणा!

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नमस्ते दोस्तों, आज एक ऐसे विषय पर बात करते हैं जो मेरे दिल के बहुत करीब है, और जिसका असर हमारी आने वाली पीढ़ियों पर सीधा पड़ता है: शिक्षा । हम अक्सर सोचते हैं कि शिक्षा का मतलब सिर्फ़ किताबों से ज्ञान देना या परीक्षा पास कराना है। लेकिन मेरा मानना है कि शिक्षा सिर्फ़ ज्ञान देना नहीं है, यह तो बदलाव को प्रेरित करना है! और यह बात खासकर हमारे घरों में, जहाँ बच्चों का चरित्र और आदतें बनती हैं, बहुत मायने रखती है। हम सभी चाहते हैं कि हमारे बच्चे अच्छे इंसान बनें, सफल हों, और ज़िंदगी में सही फ़ैसले लें। इसके लिए हम उन्हें स्कूल भेजते हैं, ट्यूशन लगवाते हैं, और हर संभव कोशिश करते हैं कि उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा मिले। पर क्या सिर्फ़ स्कूल या किताबों से मिली जानकारी ही काफ़ी है? घर ही पहली पाठशाला है मेरा अनुभव कहता है कि बच्चों की असली शिक्षा तो घर से शुरू होती है। माता-पिता, बड़े भाई-बहन – हम सब उनके पहले शिक्षक होते हैं। यहाँ शिक्षा का मतलब सिर्फ़ अक्षरों या अंकों का ज्ञान देना नहीं है, बल्कि चरित्र निर्माण (character building) और अच्छी आदतें (good habits) विकसित करना है। जैसे, अगर हम च...

#25. नकारात्मकता में सकारात्मकता

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नमस्ते दोस्तों, आज एक ऐसे विचार पर बात करते हैं जो हमें ज़िंदगी की हर मुश्किल घड़ी में उम्मीद देता है: हर नकारात्मक स्थिति में, एक सकारात्मक पहलू ढूंढना संभव है। कभी-कभी इसे ढूंढना मुश्किल होता है, लेकिन इसकी तलाश कभी मत छोड़िए। हमारी ज़िंदगी उतार-चढ़ाव से भरी है। कभी सब कुछ अच्छा लगता है, तो कभी अचानक कोई ऐसी मुश्किल आ जाती है जो हमें अंदर तक हिला देती है। ऐसे वक्त में, मन में नकारात्मकता का हावी होना बहुत स्वाभाविक है। हमें लगता है कि अब सब कुछ खत्म हो गया, कोई रास्ता नहीं बचा। लेकिन मेरा मानना है कि हर अँधेरे के पीछे एक रौशनी छिपी होती है, हर मुश्किल में एक सीख होती है, और हर नकारात्मक अनुभव में एक सकारात्मक पहलू ज़रूर होता है। इसे ढूंढना आसान नहीं होता, खासकर जब हम दर्द या निराशा में हों, लेकिन अगर हम तलाश जारी रखें, तो यह मिल ही जाता है। नकारात्मकता का जाल और सकारात्मकता की शक्ति जब हम किसी नकारात्मक स्थिति में फंस जाते हैं, तो हमारा दिमाग अक्सर उसी नकारात्मकता पर अटक जाता है। हम सिर्फ़ समस्या को देखते हैं, उसके संभावित समाधानों को नहीं। यह एक जाल की तरह है जो हमें और ज़्यादा निरा...

#24. हिम्मत: बोलने में भी, सुनने में भी

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नमस्ते दोस्तों, आज एक ऐसे गुण पर बात करते हैं जिसकी ज़रूरत हमें ज़िंदगी के हर मोड़ पर पड़ती है, लेकिन जिसे हम अक्सर सिर्फ़ एक ही पहलू से देखते हैं: हिम्मत (Courage)। हम अक्सर सोचते हैं कि हिम्मत का मतलब सिर्फ़ खड़े होकर अपनी बात कहना या चुनौतियों का सामना करना है। लेकिन मेरा मानना है कि हिम्मत वह है जो आपको खड़े होकर बोलने की शक्ति दे, और हिम्मत वह भी है जो आपको बैठकर ध्यान से सुनने की शक्ति दे। यह बात शायद थोड़ी विरोधाभासी (contradictory) लगे, लेकिन यही ज़िंदगी की सच्चाई है। बोलने की हिम्मत: अपनी आवाज़ उठाना अपनी बात रखना, अपने विचारों को व्यक्त करना, अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाना – इन सबमें यकीनन बहुत हिम्मत लगती है। जब हमें पता होता है कि हमारी बात शायद दूसरों को पसंद न आए, या हमें आलोचना का सामना करना पड़ सकता है, तब भी अपनी सच्चाई पर टिके रहना आसान नहीं होता। एक व्यवसायी के तौर पर, लुधियाना में मुझे कई बार ऐसे फ़ैसले लेने पड़े हैं या ऐसी बातें कहनी पड़ी हैं जो शायद लोकप्रिय न हों, लेकिन व्यापार के लिए ज़रूरी थीं। सच बोलने में, मुश्किल बातचीत शुरू करने में, या किसी गलत चीज़ को रोकने...

#23. सफलता और असफलता की कुंजी: आपके विचार और सकारात्मक रवैया

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नमस्ते दोस्तों, आज मैं एक ऐसे विषय पर बात करना चाहता हूँ जो हमारी ज़िंदगी की दिशा तय करता है और हमारे हर काम के नतीजे पर सीधा असर डालता है: हम जो कुछ भी करते हैं, उसमें हमारे अपने विचार ही हमें सफल बना सकते हैं, या वही हमें असफल कर सकते हैं। इसलिए, हमेशा एक सकारात्मक रवैया बनाए रखें। यह बात जितनी सरल लगती है, उतनी ही गहरी भी है। हम अक्सर बाहरी परिस्थितियों को अपनी सफलता या असफलता का कारण मानते हैं। "मेरे पास संसाधन नहीं थे," "मुझे सही अवसर नहीं मिला," या "हालात मेरे खिलाफ थे।" लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन परिस्थितियों को हम कैसे देखते हैं, यह हमारी सोच पर निर्भर करता है? विचारों की शक्ति: आपका सबसे बड़ा उपकरण हमारे विचार सिर्फ़ दिमाग में चलने वाली बातें नहीं हैं; वे हमारी वास्तविकता को आकार देते हैं। वे हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाते या घटाते हैं, हमारी ऊर्जा को प्रभावित करते हैं, और हमें चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत देते हैं या हमें उनसे दूर भगाते हैं। सकारात्मक विचार: जब आप सोचते हैं, "मैं यह कर सकता हूँ," "यह मुश्किल है, लेकिन मैं...

#22. गीता मनन: एक नई शुरुआत

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नमस्ते दोस्तों, आज मैं आपसे अपने हृदय की एक अत्यंत विशेष बात साझा करना चाहता हूँ। मेरे लिए, श्रीमद्भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, अपितु यह जीवन जीने का एक मार्गदर्शक है। वर्ष 2019 से, मैं नियमित रूप से इसका पाठ कर रहा हूँ, और मैंने स्वयं यह अनुभव किया है कि गीता मेरी उलझनों को कम करती है और मुझे सही पथ दिखाती है। यह वास्तव में हमें जीना सिखाती है। यह मेरे लिए एक बड़ी विडंबना है कि इतने गहन ज्ञान के होते हुए भी, बहुत से लोग गीता के मर्म को गहराई से नहीं समझते। कुछ तो केवल संस्कृत में इसका पाठ करते हैं, परंतु उन्हें इसका अर्थ तक ज्ञात नहीं होता। मेरा दृढ़ विश्वास है कि किसी भी ज्ञान का वास्तविक लाभ तभी है जब उसे समझा जाए और जीवन में आत्मसात किया जाए। इसी विचार के साथ, मैंने अपने इस व्यक्तिगत ब्लॉग पर एक नवीन पहल प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। अब से, प्रत्येक रविवार, मैं भगवद गीता के एक-एक विषय पर अपने विचार आपके साथ साझा करूँगा। मेरा लक्ष्य उन सभी व्यक्तियों की सहायता करना है जो गीता को पढ़ना और समझना चाहते हैं, किंतु संभवतः उसे जटिल मानते हैं अथवा आरंभ करने में संकोच करते हैं...

#21. मुस्कुराइए, क्यूंकि ये आपको और बेहतर बनाता है!

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नमस्ते दोस्तों, आज एक बहुत ही सरल लेकिन शक्तिशाली चीज़ पर बात करते हैं, जिसे हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं: मुस्कान। यह सिर्फ़ एक चेहरा बनाने से कहीं ज़्यादा है। मेरे हिसाब से, मुस्कुराइए, क्यों? क्योंकि यह आपको आकर्षक बनाता है। यह आपका मूड बदलता है। यह तनाव से राहत दिलाता है। और यह आपको सकारात्मक रहने में मदद करता है। मैं लुधियाना में एक व्यवसायी हूँ, और अपने काम के दौरान मैं हर दिन बहुत से लोगों से मिलता हूँ। मैंने हमेशा यह पाया है कि एक मुस्कान कितनी आसानी से माहौल को बदल सकती है, किसी अजनबी से भी एक पल का कनेक्शन बना सकती है। यह सिर्फ़ दूसरों के लिए नहीं, बल्कि खुद हमारे लिए भी जादू का काम करती है। 1. मुस्कान आपको आकर्षक बनाती है सोचिए, आप किससे बात करना पसंद करेंगे? एक ऐसे व्यक्ति से जिसका चेहरा उतरा हुआ है, या एक ऐसे व्यक्ति से जिसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान है? जवाब साफ है। मुस्कान आपको तुरंत अधिक मिलनसार और approachable बनाती है। यह आपकी तरफ लोगों को आकर्षित करती है। यह सिर्फ़ शारीरिक आकर्षण की बात नहीं है, बल्कि आपके व्यक्तित्व के आकर्षण की बात है। जब आप मुस्कुराते हैं, त...

#20. नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर

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नमस्ते दोस्तों, आज मैं एक ऐसे विचार पर बात करना चाहता हूँ जिसने मेरी ज़िंदगी में एक बड़ा बदलाव लाया है, और मेरा मानना है कि यह हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है: एक बार जब आप नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से बदल देते हैं, तो आपको सकारात्मक परिणाम मिलने शुरू हो जाएंगे। यह सुनने में शायद बहुत सरल लगे, लेकिन इसकी शक्ति अद्भुत है। हमारे विचार हमारी भावनाओं को जन्म देते हैं, और हमारी भावनाएं हमारे कार्यों को प्रभावित करती हैं। अंततः, हमारे कार्य ही हमारे जीवन के नतीजों को तय करते हैं। तो, अगर हमारे विचारों की नींव ही नकारात्मक होगी, तो हम कैसे सकारात्मक परिणाम की उम्मीद कर सकते हैं? लुधियाना में एक व्यवसायी के तौर पर काम करते हुए, मैंने कई बार चुनौतियों का सामना किया है। ऐसे पल भी आए जब मन में नकारात्मक विचार हावी होने लगे – 'यह काम नहीं होगा', 'मैं शायद यह नहीं कर पाऊंगा', 'चीजें हमेशा मुश्किल ही रहेंगी'। लेकिन हर बार जब मैंने सचेत रूप से उन नकारात्मक विचारों को सकारात्मक सोच से बदलने की कोशिश की, तो मैंने महसूस किया कि मेरी ऊर्जा का स्तर बदल गया, मेरी समस्य...

19. खुशी का सबसे बड़ा स्रोत: कृतज्ञता (Gratitude)

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नमस्ते दोस्तों, आज मैं एक ऐसे विचार पर बात करना चाहता हूँ जो मेरी ज़िंदगी में बहुत मायने रखता है, और मेरा मानना है कि यह सच्ची खुशी की कुंजी है: खुशी का सबसे बड़ा स्रोत हर पल आभारी रहने की क्षमता है। सोचिए, हम अक्सर सोचते हैं कि जब हमारी सारी इच्छाएँ पूरी हो जाएंगी, जब हमारे पास वो सब कुछ होगा जो हम चाहते हैं, तब हम खुश होंगे। हम बड़े लक्ष्यों का पीछा करते हैं, बड़ी सफलताओं का इंतज़ार करते हैं, और इस उम्मीद में कि 'जब ऐसा होगा, तब मैं खुश होऊंगा' अपने वर्तमान को अनदेखा कर देते हैं। लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? मैंने अपनी ज़िंदगी में यह देखा है कि खुशियाँ अक्सर उन चीज़ों में नहीं होतीं जो हमारे पास नहीं हैं, बल्कि उनमें होती हैं जो हमारे पास पहले से हैं। एक व्यवसायी के तौर पर, लुधियाना में रहते हुए, मैंने उतार-चढ़ाव दोनों देखे हैं। लेकिन हर स्थिति में, मैंने पाया है कि जब मैंने छोटी-छोटी चीज़ों के लिए भी आभार व्यक्त करना सीखा, तब मेरे अंदर एक अलग ही तरह की शांति और खुशी महसूस हुई। कृतज्ञता: ज़िंदगी का एक नया नज़रिया कृतज्ञता (Gratitude) सिर्फ़ 'धन्यवाद' कहने से कहीं ज़...

#18. अपनी कद्र, अपने वक्त की कद्र

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नमस्ते दोस्तों, आज एक ऐसे विचार पर बात करते हैं जो हमारी ज़िंदगी की दिशा तय करता है, और अक्सर हम इस पर उतना ध्यान नहीं देते जितना देना चाहिए: जब तक आप खुद को अहमियत नहीं देते, आप अपने समय को भी अहमियत नहीं देंगे। और जब तक आप अपने समय को अहमियत नहीं देंगे, तब तक आप उसका कुछ भी नहीं कर पाएंगे। यह बात जितनी सीधी है, उतनी ही गहरी भी। सोचिए, हम सभी के पास दिन के 24 घंटे होते हैं। न कम, न ज़्यादा। हर किसी को यही 24 घंटे मिलते हैं। फिर क्यों कुछ लोग अपनी ज़िंदगी में इतना कुछ हासिल कर लेते हैं, और कुछ लोग बस समय को गुज़रते देखते रहते हैं? इसका सीधा संबंध हमारी अपनी आत्म-पहचान (self-worth) और समय के प्रति हमारे दृष्टिकोण से है। खुद की क़ीमत पहचानना ही पहली सीढ़ी है जब हम खुद को कम आंकते हैं, अपनी क्षमताओं पर शक करते हैं, या यह मानते हैं कि हम किसी बड़ी चीज़ के लायक नहीं हैं, तो अनजाने में हम अपने समय को भी व्यर्थ समझने लगते हैं। हमें लगता है कि अगर हम खुद ही इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, तो हमारा समय भला कैसे महत्वपूर्ण हो सकता है? यही सोच हमें टालमटोल करने, छोटे-मोटे कामों में उलझे रहने, या बस समय...

#17. प्रेरणा: बदलावों की एक अद्भुत श्रंखला

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नमस्ते दोस्तों, आज मैं एक ऐसे विचार पर बात करना चाहता हूँ जो हमारी ज़िंदगी को लगातार आगे बढ़ाता रहता है: प्रेरणा बदलावों की एक अद्भुत श्रंखला है। एक प्रेरणा दूसरे को जन्म देती है, और यह श्रंखला निरंतर चलती रहती है। हम सभी अपनी ज़िंदगी में कभी न कभी प्रेरणा महसूस करते हैं। कभी किसी की कहानी सुनकर, कभी कोई किताब पढ़कर, तो कभी किसी छोटी सी घटना को देखकर हमें कुछ करने का जोश मिलता है। वह एक चिंगारी होती है जो हमारे अंदर कुछ नया करने, कुछ बेहतर बनने की आग लगा देती है। मैंने खुद अपनी ज़िंदगी में इस श्रंखला को कई बार महसूस किया है। जैसा कि मैंने अपने पिछले ब्लॉग्स में बताया है, मैंने जयपुर में IIT की तैयारी की, ग्रेटर नोएडा में ग्रेजुएशन की, फिर चंडीगढ़ में Byju's में काम किया। हर चरण में मुझे कुछ नया सीखने, नए लोगों से मिलने और अलग-अलग चुनौतियों का सामना करने का मौका मिला। प्रेरणा की यह श्रंखला कैसे काम करती है? मान लीजिए, आपने किसी ऐसे व्यक्ति की कहानी पढ़ी जिसने बहुत मेहनत से अपने स्वास्थ्य को सुधारा। उस कहानी ने आपको प्रेरित किया कि आप भी अपनी सेहत पर ध्यान दें। आपने सुबह उठकर योग करन...

#16. काम की शुरुआत और समापन: जहाँ असली जीत है

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नमस्ते दोस्तों, आज मैं एक ऐसे विचार पर बात करना चाहता हूँ जो अक्सर हमारी ज़िंदगी में दोहराता है: किसी भी काम को शुरू करने में एक अच्छी कोशिश लगती है, लेकिन उसे पूरा करने में उससे भी बड़ी कोशिश की ज़रूरत होती है। ज़रा सोचिए, कितनी बार ऐसा होता है जब हम किसी नए विचार से उत्साहित होकर कोई काम शुरू तो कर देते हैं, लेकिन फिर बीच में ही हमारी ऊर्जा कम हो जाती है और हम उसे अधूरा छोड़ देते हैं? चाहे वह नई फिटनेस रूटीन हो, कोई नया प्रोजेक्ट हो, या कोई भी लक्ष्य जिसे हमने तय किया हो, शुरुआत में जोश और उत्साह तो भरपूर होता है, लेकिन अंत तक उस जोश को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होती है। मैंने खुद यह महसूस किया है, खासकर जब मैंने दो साल पहले लुधियाना आकर अपने पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बंटाया। नया माहौल था, नए काम थे, और शुरुआत में सब कुछ सीखने और समझने में काफी ज़ोर लगाना पड़ा। एक नई आदत डालना, एक नई प्रक्रिया को समझना, नए लोगों के साथ तालमेल बिठाना – ये सब शुरुआत में एक अच्छी-खासी ऊर्जा मांगते हैं। लेकिन सच कहूँ तो, शुरुआत तो बस एक छोटी सी बाधा है। असली चुनौती तो तब आती है जब हमें उस काम को लगातार कर...

#15. हम वो हैं जो हम खुद को बनाते हैं

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नमस्ते दोस्तों, आज एक ऐसे विचार पर बात करते हैं जो मुझे हमेशा से बहुत शक्तिशाली लगा है: हम जो हैं, उसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं, और हम जो कुछ भी बनना चाहते हैं, उसे बनाने की शक्ति भी हमारे ही पास है। सोचिए, कितनी बड़ी बात है ये! अक्सर हम अपनी परिस्थितियों, अपनी किस्मत, या दूसरों पर अपनी खुशी और अपने हालातों का दोष मढ़ देते हैं। "मैं ऐसा इसलिए हूँ क्योंकि मेरे साथ ऐसा हुआ," या "मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मुझे मौका नहीं मिला।" लेकिन क्या यह सच है? या क्या हम अनजाने में अपनी ही शक्ति को दूसरों के हाथ में सौंप रहे होते हैं? मुझे लगता है कि असलियत यह है कि हमारे अंदर वो ताकत है जिससे हम अपनी ज़िंदगी को अपनी इच्छा के अनुसार ढाल सकते हैं। ये सिर्फ कहने की बातें नहीं हैं, ये वो सच्चाई है जिसे मैंने अपनी ज़िंदगी में महसूस किया है। सेहत से लेकर रिश्तों तक: खुद को कैसे गढ़ें चलिए एक आसान से उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए हम चाहते हैं कि हम एक स्वस्थ जीवन जिएं। यह सिर्फ सोचने भर से नहीं होगा, है ना? इसके लिए हमें खुद को तैयार करना होगा। हम तय कर सकते हैं कि हम सुबह उठकर वर्क...

#14. हर यात्रा से समृद्ध होता जीवन

नमस्ते दोस्तों, आज मैं आपसे एक ऐसे विचार पर बात करना चाहता हूँ जो मुझे हमेशा प्रेरित करता है: आपका जीवन हर उस यात्रा से समृद्ध होता है जो आपने की है। जब हम 'यात्रा' शब्द सुनते हैं, तो अक्सर हमारे दिमाग में दूर देशों की सैर, रोमांचक छुट्टियां या किसी नए स्थान की खोज आती है। बेशक, ये यात्राएं हमें नए अनुभव देती हैं, अलग-अलग संस्कृतियों से परिचित कराती हैं और हमारी यादों का हिस्सा बनती हैं। लेकिन क्या सिर्फ यही यात्राएं हैं जो हमारे जीवन को समृद्ध करती हैं? मेरा मानना है कि 'यात्रा' का अर्थ इससे कहीं ज्यादा व्यापक है। जीवन में हम हर पल किसी न किसी यात्रा पर होते हैं। कभी यह सीखने की यात्रा होती है, जिसमें हम नई चीजें सीखते हैं, गलतियाँ करते हैं और उनसे सबक लेते हैं। कभी यह रिश्तों की यात्रा होती है, जिसमें हम लोगों से मिलते हैं, जुड़ते हैं, प्यार करते हैं और कभी-कभी अलग भी होते हैं। कभी यह खुद को खोजने की यात्रा होती है, जिसमें हम अपनी पहचान, अपनी पसंद और अपनी सीमाओं को समझते हैं। और हाँ, इसमें वह भौतिक यात्रा भी शामिल है जो हमें नए स्थानों पर ले जाती है। जैसा कि मैं आपको ...

#13. अपनी खुशी की ज़िम्मेदारी: किसी और के हाथ में क्यों सौंपें?

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नमस्ते दोस्तों, आज एक ऐसे विचार पर बात करते हैं जो हमारे जीवन की दिशा बदल सकता है: अपनी खुशी की ज़िम्मेदारी खुद लेना, उसे कभी भी दूसरों के हाथों में न सौंपना। हममें से बहुत से लोग जाने–अनजाने में अपनी खुशी की चाबी दूसरों को सौंप देते हैं। हमें लगता है कि अगर कोई खास रिश्ता हमारे जीवन में आ जाए तो हम खुश हो जाएंगे, अगर हमारे दोस्त हमें समझें तो हम संतुष्ट रहेंगे, या अगर हमारे परिवार वाले हमारी हर बात मानें तो हमें शांति मिलेगी। लेकिन क्या यह सच है? मैंने खुद यह अनुभव किया है कि जब हम अपनी खुशी को दूसरों की प्रतिक्रियाओं, उनके व्यवहार या उनकी अपेक्षाओं से जोड़ देते हैं, तो हम अपनी ही खुशी के मालिक नहीं रह जाते। यह ऐसा है जैसे हमने अपनी गाड़ी की स्टीयरिंग किसी और के हाथ में दे दी हो – अब वह जहाँ ले जाएंगे, हम वहीं जाएंगे। और जब वे हमारी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते, तो हम निराश, दुखी और कभी-कभी तो गुस्से में भी आ जाते हैं। सोचिए, क्यों यह ज़रूरी है कि हम अपनी खुशी की बागडोर खुद संभालें? आपकी खुशी, आपकी शक्ति: जब आप अपनी खुशी के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराते हैं, तो आप अपनी शक्ति वापस ले लेते...

#12. दो बोल इंग्लिश के नहीं, सम्मान की भाषा है शिक्षा

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नमस्ते दोस्तों, आजकल अक्सर देखने को मिलता है कि हम शिक्षा को कुछ तय पैमानों पर आंकने लगे हैं। खासकर जब बात अंग्रेजी बोलने की आती है, तो एक धारणा बन गई है कि जो दो शब्द अंग्रेजी के बोल लेता है, वही पढ़ा-लिखा है। क्या यह सच है? क्या शिक्षा का अर्थ केवल एक भाषा पर पकड़ होना है, या कुछ और भी है जो इससे कहीं ज्यादा गहरा और महत्वपूर्ण है? मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ, और शायद आप भी इससे सहमत होंगे, कि शिक्षा का असली पैमाना हमारी भाषा या डिग्रियां नहीं, बल्कि हमारा व्यवहार और दूसरों के प्रति हमारा सम्मान है। मैंने कई ऐसे लोगों को देखा है जो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं, उनके पास बड़ी-बड़ी डिग्रियां भी होती हैं, लेकिन उनके बात करने का तरीका, उनका दूसरों के प्रति रवैया, कहीं न कहीं शिक्षा के असली मायने से कोसों दूर होता है। वे शायद शब्दों में तो बहुत कुछ कह सकते हैं, पर उनके व्यवहार में नम्रता और सम्मान की कमी साफ झलकती है। इसके उलट, ऐसे भी लोग हैं जो शायद अंग्रेजी में बात करने में उतने सहज न हों, जिनके पास औपचारिक डिग्रियां शायद कम हों, लेकिन उनका स्वभाव, उनकी विनम्रता, उनका हर किसी का सम्मा...

#11. सकारात्मकता की ओर: जब हम अच्छा सोचते हैं, तो अच्छा ही होता है

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नमस्ते दोस्तों, आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हम अक्सर खुद को नकारात्मकता के जाल में फंसा हुआ पाते हैं। कभी काम का तनाव, कभी रिश्तों की उलझन, और कभी भविष्य की चिंताएँ - ये सब हमें घेर लेती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर हम अपना ध्यान सिर्फ अच्छी चीजों पर केंद्रित करें और नकारात्मक बातों को पीछे छोड़ दें, तो हमारी ज़िंदगी कितनी बदल सकती है? मैं अपने अनुभव से कहता हूँ, यह वाकई काम करता है। मैं भी एक समय ऐसा था जब छोटी-छोटी बातों पर परेशान हो जाता था, हर चीज़ में कमी निकालता था। लेकिन फिर मैंने धीरे-धीरे अपनी सोच बदलने की कोशिश की। मैंने महसूस किया कि जब मैं सकारात्मक रहता हूँ, तो मेरे आस-पास भी सकारात्मक ऊर्जा फैलती है। सोचिए, जब आप सुबह उठते हैं और सूरज की रोशनी को देखकर मुस्कुराते हैं, तो आपका पूरा दिन कितना अच्छा गुजरता है। इसके विपरीत, अगर आप सुबह ही किसी बात पर चिढ़ जाते हैं, तो वो गुस्सा पूरे दिन आपके साथ रहता है। हमारी सोच ही हमारी नियति तय करती है। नकारात्मकता को छोड़ना आसान नहीं है। यह एक आदत की तरह है, जिसे बदलने में समय लगता है। लेकिन यह असंभव भी नहीं है। इसकी शुरुआ...

#10. खुद पर भरोसा

आज मैंने यह बात पढ़ी, "खुद पर भरोसा रखो। तुम्हारी धारणाएँ अक्सर उससे कहीं ज़्यादा सही होती हैं जितना तुम मानने को तैयार होते हो।" और यार, इसने मुझे अंदर तक छू लिया। एक व्यवसायी और साथ ही मैनेजमेंट का छात्र होने के नाते, मुझे अक्सर बड़े फैसले लेने पड़ते हैं – चाहे वह अपने बिज़नेस के लिए हों या पढ़ाई से जुड़े प्रोजेक्ट्स के लिए। कभी-कभी तो अपनी बनाई हुई रणनीतियों और योजनाओं पर भी शक होने लगता है। कितनी बार ऐसा होता है कि मेरे मन में किसी डील को लेकर, किसी नए प्रोडक्ट के बारे में, या फिर क्लास के असाइनमेंट को लेकर एक सहज विचार आता है, एक अंदरूनी आवाज जो कहती है कि 'यह सही है' या 'यह गलत है'? लेकिन फिर भी मैं उस पर पूरा भरोसा नहीं कर पाता। मैं मार्केट रिसर्च में और गहराई से उतरने लगता हूँ, दोस्तों या सलाहकारों से राय पूछने लगता हूँ, डेटा को और ज़्यादा खंगालता हूँ, और कभी-कभी तो अपने अंतर्ज्ञान के खिलाफ जाकर फैसला ले लेता हूँ। और फिर बाद में अक्सर पछतावा होता है कि काश मैंने अपने पहले विचार पर ही भरोसा किया होता। यह सिर्फ बिज़नेस या पढ़ाई की बात नहीं है। कर्मचारियो...

#9. खुश लोग, प्रेरणा का स्रोत

आज मैंने इंटरनेट पर एक विचार पढ़ा - "खुश लोग हमेशा दूसरों के लिए प्रेरणा होते हैं। आप भी दूसरों के लिए प्रेरणा बनिए।" यह बात कितनी सच है, है ना? जब मैं किसी खुश इंसान को देखता हूँ, तो अनायास ही मेरे चेहरे पर भी एक मुस्कान आ जाती है। उनकी ऊर्जा, उनका उत्साह, और जीवन के प्रति उनका सकारात्मक दृष्टिकोण, सब कुछ मुझे भीतर से छू जाता है। सोचो, जब हम किसी ऐसे व्यक्ति के साथ होते हैं जो हर छोटी बात में खुशी ढूंढ लेता है, तो हमारा मूड भी बेहतर हो जाता है। उनकी मौजूदगी में जैसे एक अलग ही सकारात्मकता फैल जाती है। मुझे याद है, मेरी बड़ी दीदी हमेशा खुश रहती हैं, फिर चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। उनके चेहरे पर हमेशा एक शांत मुस्कान रहती है। मैंने उन्हें कभी किसी की बातों को दिल पर लेते नहीं देखा। लोग कुछ भी कहें, वो अपनी धुन में खुश रहती हैं और अपनी खुशी कभी कम नहीं होने देतीं। उनकी यह आदत मुझे हमेशा प्रेरित करती थी कि जीवन में चुनौतियाँ तो आएंगी, लेकिन उनसे परेशान होने की बजाय, हमें उनमें भी कुछ अच्छा ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए। उनकी खुशी केवल उनके लिए नहीं है, बल्कि वह पूरे परिवार के लिए एक ...

#8. बस तैयारी की बात है...

कल मैंने कहा था की विल-पावर होने से हम अपनी कोई भी आदत बदल सकते हैं| लेकिन आज इंटरनेट पर एक विचार पढ़ने के बाद उसमे थोड़ा सा सुधार करना चाहूँगा| "कुछ लोगों में इच्छाशक्ति होती है और कुछ में नहीं, ऐसा नहीं है। बात बस इतनी है कि कुछ लोग बदलाव के लिए तैयार होते हैं और कुछ नहीं।" हम अक्सर सुनते हैं कि 'उसमें बहुत इच्छाशक्ति है', या 'काश मुझमें भी उतनी इच्छाशक्ति होती'। हम इच्छाशक्ति को एक ऐसी चीज़ मानते हैं जो या तो आपके पास होती है या नहीं होती, जैसे कोई जन्मजात गुण हो। पर क्या सच में ऐसा है? मुझे लगता है कि यह इच्छाशक्ति से ज़्यादा तैयारी का मामला है। सोचिए, जब आप कोई बड़ा बदलाव करने की सोचते हैं, जैसे सुबह जल्दी उठना, रोज़ाना व्यायाम करना, या कोई बुरी आदत छोड़ना। शुरुआत में आप जोश में होते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में आपका जोश ठंडा पड़ने लगता है। क्या इसका मतलब यह है कि आपमें इच्छाशक्ति की कमी है? शायद नहीं। शायद इसका मतलब यह है कि आप उस बदलाव के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थे। तैयारी का मतलब सिर्फ़ शारीरिक रूप से तैयार होना नहीं है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप...

#7. आदतें बदलने का मेरा नज़रिया

हम इंसान कुछ आदतों को छोड़ने और कुछ नई आदतों को अपनाने के लिए न जाने क्या-क्या जतन करते हैं। जैसे, आज पापा ने डॉक्टर से फ़ोन चलाने की आदत के बारे में पूछने को कहा, सिर्फ़ यह सुनने के लिए कि डॉक्टर ने उन्हें फ़ोन न चलाने की नसीहत दी है। और ऐसा सिर्फ़ उनके साथ नहीं होता; हम सभी लोग कुछ अच्छा करने के लिए बाहरी प्रेरणा या दबाव लेना चाहते हैं। हमें लगता है कि अगर डॉक्टर ने मना कर दिया, तो हमारे लिए मोबाइल न चलाना आसान हो जाएगा। या फिर, हमारे किसी प्रियजन की तरफ से स्वास्थ्य की नसीहत मिलने से शायद हम अपनी दिनचर्या को बेहतर ढंग से व्यवस्थित कर पाएँगे। क्या वाकई ऐसा होता है? कुछ समय के लिए ज़रूर, लेकिन क्या इससे हमारी आदत पूरी तरह से बदल जाती है? नहीं, बल्कि ऐसा करने से हमारा मन और भी ज़्यादा चिड़चिड़ा होता जाता है। क्योंकि हम बाहरी नसीहत तभी लेते हैं, जब हम खुद अपने मन को नियंत्रित नहीं कर पाते। और इसी बाहरी नसीहत और मन की लड़ाई में हमारा स्वभाव चिड़चिड़ा होता जाता है। परिणामस्वरूप, हम उस काम को, जिसे नहीं करना चाहते, पहले से भी ज़्यादा करने लगते हैं। इससे बेहतर है कि हम खुद अपने बारे में निर...

#6. ननिहाल की छुट्टियाँ और घर की खामोशी

छुट्टियों का मौसम खत्म हो गया, और बच्चे अब फिर से स्कूल जाने लगे हैं. मेरे भी भांजे-भांजी छुट्टियों में आए हुए थे, जो जून के अंतिम दिनों में वापस चले गए. जुलाई से उनके भी स्कूल खुलने वाले थे. लेकिन जो बच्चे अभी स्कूल जाने के लिए भी छोटे हैं, उनके लिए तो हमेशा छुट्टियाँ ही हैं. उनको अपने ननिहाल जाने के लिए गर्मियों वाली छुट्टियों का इंतज़ार नहीं करना पड़ता. जैसे कि हमारी प्यारी भतीजी दिवा, जो आज भाभी के साथ अपने ननिहाल गई है. दिवा की वजह से घर में रौनक बनी रहती है; वो अब 15-20 दिनों के लिए हमसे दूर रहेगी. ऐसा लगता है कि वो अपने साथ घर की सारी रौनक भी ले गई है. अब घर में उसकी खिलखिलाहट की आवाज़ नहीं है, एक अजीब सी खामोशी है. अपने नाना-नानी, मामा-मामी को भी तो खुश करने की ज़िम्मेदारी उसी पर है! अभी जब राघव, गोपिका, और भव्या आए हुए थे (मेरे भांजे-भांजी), तो दिवा ने उनसे काफी नई-नई चीजें सीखी थीं. जैसे "मछली जल की रानी है" वाली कविता का अपने अंदाज़ में मनमोहक अभिनय, इसके अलावा और भी कई सारे शब्द और उनके अर्थ समझने लग गई है. जब उसका मन होता है तो काफी अच्छे से बात करती है. हालाँकि,...

#5. स्पष्टवादी हिंदी vs Ambiguous English

आज मैंने कुछ ऐसा सोचा जिसने मुझे वाकई विचार करने पर मजबूर कर दिया। यह कुछ ऐसा है जो हम सभी अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अनुभव करते हैं, लेकिन शायद ही कभी इस पर ध्यान देते हैं: भाषा की स्पष्टता। विशेष रूप से, मैं हिंदी और अंग्रेज़ी के बीच के अंतर के बारे में सोच रहा था, खासकर जब बात स्पष्टता की आती है। मुझे लगता है कि हिंदी में एक अद्भुत स्पष्टता है। जब आप हिंदी में कुछ कहते हैं, तो अक्सर उसका अर्थ बिलकुल सीधा और स्पष्ट होता है। शब्दों में ही उनका अर्थ समाहित होता है। उदाहरण के लिए, "सूर्य उदय हो रहा है" - इसमें कोई संदेह नहीं कि सूरज निकल रहा है। या "मुझे भूख लगी है" - सीधा मतलब, भूख लगी है। हिंदी के शब्द अपने आप में पूर्ण और आत्मनिर्भर होते हैं, जो बात को समझने में बहुत आसान बना देते हैं। इसके विपरीत, अंग्रेज़ी कभी-कभी बहुत उलझन भरी हो सकती है। एक ही शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं, या फिर वाक्य-विन्यास के कारण अर्थ बदल सकता है। अक्सर मुझे ऐसा लगता है कि अंग्रेज़ी में बात करते समय या कुछ पढ़ते समय, आपको संदर्भ पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है। कभी-कभी तो मज़ाक में भी...

#4. Decision और Right Decision

आज सुबह मैं बैठा था और अपने पुराने कुछ choices के बारे में सोच रहा था। अक्सर हम सब सोचते हैं कि काश हमने तब वो "right decision" लिया होता। लेकिन क्या सच में right decision जैसी कोई चीज़ होती है? या शायद असली चीज़ तो decision लेना ही है? मुझे लगता है कि हम अक्सर इसी डर में अटक जाते हैं कि कहीं हम कुछ गलत न चुन लें। यह सोच-सोचकर कि "what if this goes wrong?", हम कोई कदम ही नहीं उठाते। यह एक huge problem है। Inaction किसी भी गलत decision से ज़्यादा खतरनाक हो सकता है। Life में कई बार ऐसा होता है जब हमारे पास सारी information नहीं होती। हम फ्यूचर को नहीं देख सकते। ऐसे में, perfect decision का इंतजार करना simply unrealistic है। हमें बस एक bold step लेना होता है। एक बार जब हम कोई decision ले लेते हैं, तो हमारे पास कुछ होता है जिस पर हम work कर सकते हैं। हम उसे adjust कर सकते हैं, improve कर सकते हैं, या ज़रूरत पड़ने पर change भी कर सकते हैं। गलतियाँ तो होंगी ही। हर decision "right" नहीं हो सकता। लेकिन उन गलतियों से ही तो हम सीखते हैं। अगर हम डर के मारे कोई decisi...

#3. उलझन, Discipline, और Regret

आज भी रोज़ की तरह सुबह 6 बजे उठा। हमेशा की तरह कल रात भी पूरी excitement थी कि सुबह उठकर exercise करनी है। लेकिन पता नहीं क्या हुआ, सुबह उठने के बाद थोड़ा मन बदलने लगा। कभी-कभी ऐसा होता रहता है, खासकर उस दौरान जब एक break के बाद फिर से अपना routine शुरू करना होता है। और अगर एक बार हमने आलस को अपने routine से ऊपर रख दिया तो फिर एक सिलसिला शुरू हो जाता है। और धीरे-धीरे हमारी आदत छूट जाती है। हालाँकि कभी-कभी अपने regular routine से rest ले लेना कोई ख़राब बात नहीं है, लेकिन उसके लिए guilty feel करना गलत है। अगर हम ऐसी unexpected रुकावटों का अफ़सोस करने लगे, फिर तो समझो कोई काम complete हो नहीं पाएगा। इसलिए मैं पहली कोशिश तो करता हूँ कि अपने routine को discipline से follow करता रहूँ। और अगर कभी-कभी किसी कारणवश follow नहीं हो पाया तो उसके लिए regret न करके आगे focus करता हूँ, ताकि बाकी पूरा दिन अच्छे से गुजरे। वैसे आज मैंने दोनों के बीच का रास्ता choose किया और exercise न करके सिर्फ morning walk पर गया और हमेशा की तरह लौकी और पेठे का जूस भी पिया। फिर अपना पूरा दिन हमेशा की तरह ही excitement ...

#2. Thought of the Day

The more you feed your mind with Positive Thoughts, the more you can attract Great Things into your life. जितना अधिक आप अपने मन को सकारात्मक विचारों से भरेंगे, उतना ही अधिक आप अपने जीवन में महान चीजों को आकर्षित कर सकते हैं। Source: Internet.

#1. Restarting Writing as a Habit: Reel World से Real World तक

काफी टाइम हो गया मैंने कुछ नहीं लिखा। या ये कह सकते हैं कि regular लिखने की आदत छूट गई। Professional life में आने के बाद, लिखने का टाइम ही कहाँ मिलता था? फिर धीरे-धीरे बाकी चीजें ज़रूरी होती गईं और लिखना बिल्कुल बंद सा हो गया। हालाँकि कुछ ख़ास दोस्तों के जन्मदिन पर या किसी खास अवसर पर, उन्हें digital खत ज़रूर भेजता रहा हूँ। ये भी अपने आप में अलग ही सुकून देता है। ज्यादातर तो मैं English में ही लिखता आया हूँ, लेकिन अब हिंदी में भी लिखने का मन है। हिंदी में लिखना या पढ़ना हमेशा से ही अच्छा लगता रहा है, लेकिन QWERTY keyboard की सहूलियत और हिंदी में ख़राब होती लिखावट की वजह से हिंदी की तरफ रुझान कम होता गया। अब technology के इस्तेमाल से हिंदी में लिखना भी काफी आसान हो गया, सो अब से मेरी कोशिश रहेगी कि आगे के updates हिंदी में ही लिखूँ। हाल ही में मैंने social media से दूरी बनाई है, सो अब से मेरी कोशिश है कि मैं रोज़ यहाँ कुछ न कुछ लिखूँ। रोज़ नहीं तो week में कम से कम एक बार तो लिख ही सकता हूँ। In fact मैं तो चाहता हूँ कि सभी लोग social media का इस्तेमाल कम से कम करें, और कुछ न कुछ लिखना य...