#24. हिम्मत: बोलने में भी, सुनने में भी
नमस्ते दोस्तों,
आज एक ऐसे गुण पर बात करते हैं जिसकी ज़रूरत हमें ज़िंदगी के हर मोड़ पर पड़ती है, लेकिन जिसे हम अक्सर सिर्फ़ एक ही पहलू से देखते हैं: हिम्मत (Courage)। हम अक्सर सोचते हैं कि हिम्मत का मतलब सिर्फ़ खड़े होकर अपनी बात कहना या चुनौतियों का सामना करना है। लेकिन मेरा मानना है कि हिम्मत वह है जो आपको खड़े होकर बोलने की शक्ति दे, और हिम्मत वह भी है जो आपको बैठकर ध्यान से सुनने की शक्ति दे।
यह बात शायद थोड़ी विरोधाभासी (contradictory) लगे, लेकिन यही ज़िंदगी की सच्चाई है।
बोलने की हिम्मत: अपनी आवाज़ उठाना
अपनी बात रखना, अपने विचारों को व्यक्त करना, अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाना – इन सबमें यकीनन बहुत हिम्मत लगती है। जब हमें पता होता है कि हमारी बात शायद दूसरों को पसंद न आए, या हमें आलोचना का सामना करना पड़ सकता है, तब भी अपनी सच्चाई पर टिके रहना आसान नहीं होता।
एक व्यवसायी के तौर पर, लुधियाना में मुझे कई बार ऐसे फ़ैसले लेने पड़े हैं या ऐसी बातें कहनी पड़ी हैं जो शायद लोकप्रिय न हों, लेकिन व्यापार के लिए ज़रूरी थीं। सच बोलने में, मुश्किल बातचीत शुरू करने में, या किसी गलत चीज़ को रोकने में वाकई हिम्मत लगती है। यह हिम्मत ही हमें अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने और सही के लिए खड़े होने की शक्ति देती है।
सुनने की हिम्मत: समझना और स्वीकार करना
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सुनने में भी कितनी हिम्मत लगती है? ख़ासकर जब:
आप किसी ऐसे व्यक्ति को सुन रहे हों जिससे आप असहमत हों: अपनी राय को एक तरफ रखकर, किसी और के दृष्टिकोण को धैर्यपूर्वक सुनना, भले ही वह आपके विचारों से बिल्कुल विपरीत हो, आसान नहीं होता। इसके लिए खुले दिमाग और सम्मान की ज़रूरत होती है।
आप आलोचना सुन रहे हों: अपनी कमज़ोरियों या गलतियों के बारे में सुनना, और उसे स्वीकार करना, बहुत हिम्मत का काम है। हमारा अहंकार अक्सर हमें ऐसा करने से रोकता है।
आप किसी की दुखभरी कहानी सुन रहे हों: किसी के दर्द को महसूस करना, उसके साथ सहानुभूति रखना और उसे बिना जज किए सुनना, इसके लिए भावनात्मक हिम्मत चाहिए होती है।
आप वो सच सुन रहे हों जो आपको पसंद न हो: कभी-कभी सच कड़वा होता है, और उसे स्वीकार करने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए होती है।
सुनने की हिम्मत आपको सीखने का अवसर देती है। यह आपको दूसरों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है, आपके रिश्तों को मज़बूत करती है, और आपको एक बेहतर इंसान बनाती है। जब आप सुनते हैं, तो आप न केवल जानकारी प्राप्त करते हैं, बल्कि आप विनम्रता, धैर्य और समझदारी का भी प्रदर्शन करते हैं।
निष्कर्ष: संतुलन ही कुंजी है
जीवन में संतुलन ही कुंजी है। हमें यह जानने की हिम्मत होनी चाहिए कि कब बोलना है और कब सुनना है।
कभी-कभी, हमें अपनी आवाज़ उठानी होती है, खासकर जब न्याय या सिद्धांत का सवाल हो।
और कभी-कभी, हमें बस चुप होकर सुनना होता है, ताकि हम सीख सकें, दूसरों को समझ सकें और अपने पूर्वाग्रहों (biases) को दूर कर सकें।
दोनों ही स्थितियों में सच्ची हिम्मत की ज़रूरत होती है – एक में निडरता से अपने विचार व्यक्त करने की, और दूसरे में विनम्रता से दूसरों के विचारों और भावनाओं को ग्रहण करने की।
तो दोस्तों, अगली बार जब आप किसी बातचीत में हों, तो सिर्फ़ बोलने की नहीं, बल्कि सुनने की हिम्मत पर भी विचार करें।
धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Sector 32A, Ludhiana.
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