#29. गीता मनन: अर्जुन भी हम हैं, और कुरुक्षेत्र भी हम

नमस्ते दोस्तों,

आज एक ऐसे सवाल पर बात करते हैं जो शायद आपके मन में भी आया होगा: श्रीमद्भगवद गीता आख़िर किसके लिए कही गई है? हम सब जानते हैं कि भगवान कृष्ण ने युद्ध शुरू होने से ठीक पहले कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। गीता की किताब में भी कृष्ण और अर्जुन का संवाद ही तो लिखा है।

हममें से ज़्यादातर लोग गीता को एक पूजनीय ग्रंथ मानते हैं, और इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन, मुझे थोड़ी आपत्ति इस बात से ज़रूर है कि बहुत से लोग गीता में दिए उपदेश को समझे बिना ही, बस बाहर से इसकी पूजा करते हैं। कई लोग तो इसके संस्कृत श्लोकों को रटते रहते हैं और सोचते हैं कि बस इसी से पुण्य मिल जाएगा।

मेरा मानना है कि अगर हम भगवद्गीता को सच में समझने के मकसद से पढ़ें, तो सबसे पहले हमें यही समझ आएगा कि गीता की पूजा से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है इसका अध्ययन करना। गीता तो संसार के सभी सवालों का एक जवाब है!


गीता आपके लिए ही है

श्रीमद्भगवद गीता को हम तब तक पूरी तरह नहीं समझ सकते, जब तक हम यह न मान लें कि यह हमारे लिए ही लिखी गई है, न कि सिर्फ़ उस अर्जुन के लिए जिसका ज़िक्र महाभारत में है।

ज़रा सोचिए, अर्जुन कौन है? अगर भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश सिर्फ़ कुंती पुत्र अर्जुन के लिए दिया होता, तो महर्षि वेदव्यास जी को इसे लिखने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। लेकिन दूसरी तरफ, गीता के हर श्लोक में भगवान कृष्ण सीधे अर्जुन को संबोधित करके ही अपनी बात कहते हैं।


अर्जुन: हम सबका मन

असल में, अर्जुन कोई व्यक्ति विशेष नहीं है। अर्जुन एक भाव है, एक अनुराग है, यह हमारे मन की एक अवस्था है। जब हमारे मन में कई सवाल उठते हैं, जब हम उलझन में होते हैं और उन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए अपने गुरु या किसी मार्गदर्शक (mentor) के पास जाते हैं, उस वक़्त हम ही अर्जुन होते हैं। इसीलिए, हमें सबसे पहले यही समझना होगा कि भगवद्गीता हमारे लिए ही लिखी गई है।


कौरव-पांडव और कुरुक्षेत्र का असली अर्थ

गीता में जिन कौरवों की बात की गई है, वे सिर्फ़ धृतराष्ट्र के 100 पुत्र नहीं हैं, बल्कि वे हमारे अंदर छिपे हुए नकारात्मक विचार हैं। वहीं, पांडव  कुंती के पाँच पुत्र नहीं, बल्कि हमारे भीतर के सकारात्मक विचार हैं।

और भगवद्गीता में जिस कुरुक्षेत्र की बात हुई है, वह आज के हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र ज़िला नहीं है, बल्कि वह हमारा मस्तिष्क है, हमारा मन है।

हमारे मस्तिष्क रूपी कुरुक्षेत्र में हमेशा कौरव रूपी नकारात्मक और पांडव रूपी सकारात्मक विचारों के बीच युद्ध चलता रहता है। और उसी युद्ध में, सकारात्मक विचारों को महत्व देने वाले अर्जुन रूपी मन के लिए भगवद्गीता का उपदेश दिया गया है। इसकी मदद से हम हमेशा सही निर्णय ले सकते हैं और जीवन की हर चुनौती का सामना कर सकते हैं।

तो आइए, गीता को सिर्फ़ एक पूजनीय ग्रंथ के रूप में ही नहीं, बल्कि अपने जीवन के मार्गदर्शक के रूप में भी देखें, उसे समझें और अपने अंदर के अर्जुन को सही राह दिखाएँ।

आज के लिए इतना ही, अगले रविवार फिर मिलते हैं श्रीमद भगवद्गीता के किसी अन्य विचार पर।

धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Sector 32A, Ludhiana.

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