#6. ननिहाल की छुट्टियाँ और घर की खामोशी
छुट्टियों का मौसम खत्म हो गया, और बच्चे अब फिर से स्कूल जाने लगे हैं. मेरे भी भांजे-भांजी छुट्टियों में आए हुए थे, जो जून के अंतिम दिनों में वापस चले गए. जुलाई से उनके भी स्कूल खुलने वाले थे.
लेकिन जो बच्चे अभी स्कूल जाने के लिए भी छोटे हैं, उनके लिए तो हमेशा छुट्टियाँ ही हैं. उनको अपने ननिहाल जाने के लिए गर्मियों वाली छुट्टियों का इंतज़ार नहीं करना पड़ता. जैसे कि हमारी प्यारी भतीजी दिवा, जो आज भाभी के साथ अपने ननिहाल गई है.
दिवा की वजह से घर में रौनक बनी रहती है; वो अब 15-20 दिनों के लिए हमसे दूर रहेगी. ऐसा लगता है कि वो अपने साथ घर की सारी रौनक भी ले गई है. अब घर में उसकी खिलखिलाहट की आवाज़ नहीं है, एक अजीब सी खामोशी है. अपने नाना-नानी, मामा-मामी को भी तो खुश करने की ज़िम्मेदारी उसी पर है!
अभी जब राघव, गोपिका, और भव्या आए हुए थे (मेरे भांजे-भांजी), तो दिवा ने उनसे काफी नई-नई चीजें सीखी थीं. जैसे "मछली जल की रानी है" वाली कविता का अपने अंदाज़ में मनमोहक अभिनय, इसके अलावा और भी कई सारे शब्द और उनके अर्थ समझने लग गई है. जब उसका मन होता है तो काफी अच्छे से बात करती है. हालाँकि, उसकी कुछ बातों को समझना बड़ा मुश्किल है, लेकिन वो किसी न किसी तरह अपने इशारों से समझा ही देती है.
अब जब अपने ननिहाल गई है तो ज़रूर वहाँ अपने बराबर के भाई-बहनों से कुछ नया सीख कर आएगी, और आने के बाद हमें भी सिखाएगी.
बीच-बीच में वीडियो कॉल पर बात तो करते हैं दिवा से, लेकिन सही बताऊँ तो मुझे वीडियो कॉल पर ऐसे बात करना अच्छा नहीं लगता. क्यूँकि जो खुशी साथ बैठकर बात करने में है, वो वीडियो कॉल में कहाँ? दूसरा, बच्चों को जहाँ हैं वहीं का आनंद लेने देना ही मेरी नज़र में ज़्यादा अच्छा है. हाँ, जब कभी ज़्यादा याद आए तो फ़ोन पर बात भी कर लेनी चाहिए, लेकिन शायद रोज़-रोज़ नहीं.
फ़िलहाल हम सब तैयार हो रहे हैं ये 15-20 दिन गुज़ारने के लिए. जितना उसके इन 15-20 दिनों के लिए जाने का दुःख है, उससे कहीं ज़्यादा ये सोचकर खुशी होती है कि वो इन 15-20 दिनों के बाद फिर से आएगी और अपनी रौनक भरी मुस्कान और हरकतों से फिर से इस घर को महकाएगी. उसकी वापसी का इंतज़ार अब और भी ज़्यादा है!
जल्दी मिलते हैं!
लेकिन जो बच्चे अभी स्कूल जाने के लिए भी छोटे हैं, उनके लिए तो हमेशा छुट्टियाँ ही हैं. उनको अपने ननिहाल जाने के लिए गर्मियों वाली छुट्टियों का इंतज़ार नहीं करना पड़ता. जैसे कि हमारी प्यारी भतीजी दिवा, जो आज भाभी के साथ अपने ननिहाल गई है.
दिवा की वजह से घर में रौनक बनी रहती है; वो अब 15-20 दिनों के लिए हमसे दूर रहेगी. ऐसा लगता है कि वो अपने साथ घर की सारी रौनक भी ले गई है. अब घर में उसकी खिलखिलाहट की आवाज़ नहीं है, एक अजीब सी खामोशी है. अपने नाना-नानी, मामा-मामी को भी तो खुश करने की ज़िम्मेदारी उसी पर है!
अभी जब राघव, गोपिका, और भव्या आए हुए थे (मेरे भांजे-भांजी), तो दिवा ने उनसे काफी नई-नई चीजें सीखी थीं. जैसे "मछली जल की रानी है" वाली कविता का अपने अंदाज़ में मनमोहक अभिनय, इसके अलावा और भी कई सारे शब्द और उनके अर्थ समझने लग गई है. जब उसका मन होता है तो काफी अच्छे से बात करती है. हालाँकि, उसकी कुछ बातों को समझना बड़ा मुश्किल है, लेकिन वो किसी न किसी तरह अपने इशारों से समझा ही देती है.
अब जब अपने ननिहाल गई है तो ज़रूर वहाँ अपने बराबर के भाई-बहनों से कुछ नया सीख कर आएगी, और आने के बाद हमें भी सिखाएगी.
बीच-बीच में वीडियो कॉल पर बात तो करते हैं दिवा से, लेकिन सही बताऊँ तो मुझे वीडियो कॉल पर ऐसे बात करना अच्छा नहीं लगता. क्यूँकि जो खुशी साथ बैठकर बात करने में है, वो वीडियो कॉल में कहाँ? दूसरा, बच्चों को जहाँ हैं वहीं का आनंद लेने देना ही मेरी नज़र में ज़्यादा अच्छा है. हाँ, जब कभी ज़्यादा याद आए तो फ़ोन पर बात भी कर लेनी चाहिए, लेकिन शायद रोज़-रोज़ नहीं.
फ़िलहाल हम सब तैयार हो रहे हैं ये 15-20 दिन गुज़ारने के लिए. जितना उसके इन 15-20 दिनों के लिए जाने का दुःख है, उससे कहीं ज़्यादा ये सोचकर खुशी होती है कि वो इन 15-20 दिनों के बाद फिर से आएगी और अपनी रौनक भरी मुस्कान और हरकतों से फिर से इस घर को महकाएगी. उसकी वापसी का इंतज़ार अब और भी ज़्यादा है!
जल्दी मिलते हैं!
Madhusudan Somani.
Comments
Post a Comment