#31. आपकी सोच आपकी दुनिया को बनाती

नमस्ते दोस्तों,

आज ज़िंदगी के एक बड़े दिलचस्प पहलू पर बात करते हैं: यह ज़िंदगी की अजीब बात है; अगर आप सर्वश्रेष्ठ (best) के अलावा कुछ भी स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं, तो आपको अक्सर वही मिलता है।

यह बात सुनने में शायद बड़ी या थोड़ी घमंड भरी लग सकती है, लेकिन मेरा मानना है कि यह मानवीय मनोविज्ञान (human psychology) और हमारे दृढ़ संकल्प (determination) की एक गहरी सच्चाई है। यह सिर्फ़ किस्मत की बात नहीं, बल्कि यह आपके रवैये, आपकी अपेक्षाओं और आपकी अटूट प्रतिबद्धता का परिणाम है।

ज़्यादातर लोग 'ठीक-ठाक' (average) में ही संतुष्ट हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि 'इतना मिल गया, बहुत है' या 'इससे ज़्यादा की उम्मीद करना ठीक नहीं।' लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने लिए, अपने काम के लिए, या अपने जीवन के लिए कभी भी 'औसत' को स्वीकार नहीं करते। वे हमेशा सर्वश्रेष्ठ की तलाश में रहते हैं, और हैरानी की बात यह है कि उन्हें अक्सर वही मिल भी जाता है।

यह काम कैसे करता है?

  1. आपकी अपेक्षाएँ आपके प्रयासों को आकार देती हैं: जब आप अपने लिए सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद करते हैं, तो आप उसी के अनुसार प्रयास भी करते हैं। आपकी मेहनत, आपका समर्पण और आपकी एकाग्रता बढ़ जाती है। आप कम में संतुष्ट नहीं होते, इसलिए आप तब तक नहीं रुकते जब तक आप अपने उच्चतम मानकों (highest standards) को पूरा नहीं कर लेते।

  2. मानसिकता का खेल: यह सब हमारी मानसिकता का खेल है। जब आप अपने दिमाग को यह संकेत देते हैं कि 'मैं सिर्फ़ सर्वश्रेष्ठ के लायक हूँ', तो आपका दिमाग उसी दिशा में काम करने लगता है। यह बाधाओं को अवसरों में बदलता है और आपको समाधान खोजने के लिए प्रेरित करता है।

  3. दृढ़ता और लचीलापन (Resilience): सर्वश्रेष्ठ की तलाश में असफलताएँ भी आती हैं। लेकिन जब आप सर्वश्रेष्ठ से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करने का दृढ़ निश्चय कर लेते हैं, तो आप इन असफलताओं से सीखते हैं, उनसे ऊपर उठते हैं और तब तक कोशिश करते रहते हैं जब तक आप सफल नहीं हो जाते। आपकी दृढ़ता बढ़ जाती है।

ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ लोगों और संस्थानों ने 'सर्वश्रेष्ठ' से कम कुछ भी स्वीकार नहीं किया, और उन्हें वही मिला:

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO): इसरो ने हमेशा खुद को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक बनाने का लक्ष्य रखा। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशनों में कई चुनौतियाँ आईं, पर उन्होंने कभी 'ठीक-ठाक' परिणामों को स्वीकार नहीं किया। उनकी अपेक्षाएँ हमेशा उच्चतम रहीं, और इसीलिए वे कम बजट में भी दुनिया को चौंकाने वाले परिणाम दे पाए। यह 'सर्वश्रेष्ठ' की आकांक्षा का ही परिणाम है।

  • नीरज चोपड़ा: ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा ने अपने खेल में कभी औसत दर्जे को स्वीकार नहीं किया। उनका हर थ्रो, हर ट्रेनिंग सेशन, सर्वश्रेष्ठ बनने की दिशा में था। उन्होंने हर बार अपनी पिछली परफॉर्मेंस को बेहतर करने की कोशिश की, और इसी मानसिकता ने उन्हें विश्व स्तर पर सर्वश्रेष्ठ बनाया।

  • कुछ स्टार्टअप्स और उद्यमी: भारत में ऐसे कई युवा उद्यमी हैं जिन्होंने सिर्फ़ 'एक और कंपनी' बनाने की बजाय, 'सर्वश्रेष्ठ उत्पाद' या 'सर्वश्रेष्ठ सेवा' देने का सपना देखा। उन्होंने रात-दिन मेहनत की, शुरुआती असफलताओं से सीखे, और अपने उच्च मानकों से कभी समझौता नहीं किया। आज उनमें से कई भारतीय स्टार्टअप्स वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रहे हैं, क्योंकि उन्होंने कभी औसत को स्वीकार नहीं किया।

निष्कर्ष

तो दोस्तों, अपनी ज़िंदगी में आप जो कुछ भी करें – चाहे वह आपका करियर हो, आपके रिश्ते हों, आपकी सेहत हो, या आपका व्यक्तिगत विकास हो – अपने लिए 'सर्वश्रेष्ठ' का मानक तय करें।

अपने आप से पूछें: क्या मैं अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहा हूँ? क्या मैं सर्वश्रेष्ठ परिणाम की उम्मीद कर रहा हूँ? जब आप 'ठीक-ठाक' में संतुष्ट होना छोड़ देंगे और सिर्फ़ 'सर्वश्रेष्ठ' की मांग करेंगे, तो आप देखेंगे कि ज़िंदगी भी आपको वही देना शुरू कर देगी जिसके आप सच्चे हकदार हैं।

याद रखिए, आपकी सोच आपकी दुनिया को बनाती है। अपनी सोच को ऊँचा रखें, और ज़िंदगी में सर्वश्रेष्ठ को आकर्षित करें।

धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Sector 32A, Ludhiana.

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