#7. आदतें बदलने का मेरा नज़रिया

हम इंसान कुछ आदतों को छोड़ने और कुछ नई आदतों को अपनाने के लिए न जाने क्या-क्या जतन करते हैं। जैसे, आज पापा ने डॉक्टर से फ़ोन चलाने की आदत के बारे में पूछने को कहा, सिर्फ़ यह सुनने के लिए कि डॉक्टर ने उन्हें फ़ोन न चलाने की नसीहत दी है।

और ऐसा सिर्फ़ उनके साथ नहीं होता; हम सभी लोग कुछ अच्छा करने के लिए बाहरी प्रेरणा या दबाव लेना चाहते हैं। हमें लगता है कि अगर डॉक्टर ने मना कर दिया, तो हमारे लिए मोबाइल न चलाना आसान हो जाएगा। या फिर, हमारे किसी प्रियजन की तरफ से स्वास्थ्य की नसीहत मिलने से शायद हम अपनी दिनचर्या को बेहतर ढंग से व्यवस्थित कर पाएँगे।

क्या वाकई ऐसा होता है? कुछ समय के लिए ज़रूर, लेकिन क्या इससे हमारी आदत पूरी तरह से बदल जाती है?

नहीं, बल्कि ऐसा करने से हमारा मन और भी ज़्यादा चिड़चिड़ा होता जाता है। क्योंकि हम बाहरी नसीहत तभी लेते हैं, जब हम खुद अपने मन को नियंत्रित नहीं कर पाते। और इसी बाहरी नसीहत और मन की लड़ाई में हमारा स्वभाव चिड़चिड़ा होता जाता है। परिणामस्वरूप, हम उस काम को, जिसे नहीं करना चाहते, पहले से भी ज़्यादा करने लगते हैं।

इससे बेहतर है कि हम खुद अपने बारे में निर्णय लेना शुरू करें और उसका ज़िम्मेदारी से पालन करें। काफ़ी लोगों को लगता है कि यह तो असंभव है, बहुत ज़्यादा मुश्किल है...

लेकिन असल में ऐसा है नहीं। हमें बस एक कारण ढूँढने की देर है जिसके बल पर हम कोई भी कठोर निर्णय ले सकें। कोई ऐसा कारण जिसे टालने के लिए हमारे पास कोई बहाना न हो।

यह इतना मुश्किल भी नहीं है। एक बार अगर हम ऐसे निर्णय लेना शुरू कर दें, तो फिर यह धीरे-धीरे काफ़ी आसान होता जाएगा। और अपने निर्णयों पर अडिग रहने से जो आत्मविश्वास बढ़ेगा, उसका फ़ायदा तो ऐसे समझो कि उपहार में मिलेगा।

ऐसा करने के लिए और कुछ नहीं, बस थोड़ी सी इच्छाशक्ति (विल-पावर) चाहिए। और इच्छाशक्ति मज़बूत होने पर वह कारण भी आसानी से मिल जाएगा, जिसकी मदद से हम वो निर्णय ले पाएँगे जिनकी हमें वास्तव में ज़रूरत है। ऐसी ही इच्छाशक्ति आज मैंने पापा में देखी, जिसकी वजह से वह हमें कीपैड वाला फ़ोन लाने को कह रहे थे।

लेकिन कीपैड वाला फ़ोन भी बाहरी प्रेरणा या दबाव का ही रूप है। इसलिए हमने पापा को समझाया कि अगर फ़ोन कम चलाने का मन में ठान लोगे, तो फिर कीपैड वाला फ़ोन हो या स्मार्टफोन, आप खुद पर नियंत्रण रख पाओगे। और यह अनुभव कीपैड वाले फ़ोन की बंदिश से काफ़ी ज़्यादा अच्छा लगेगा।

मुझे उम्मीद है कि पापा और ऐसे सभी लोग जो अपनी कुछ ऐसी आदतों को बदलना चाहते हैं, वे जल्दी ही इसमें सफल होंगे।

शुभ रात्रि!
Madhusudan Somani.

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