#10. खुद पर भरोसा

आज मैंने यह बात पढ़ी, "खुद पर भरोसा रखो। तुम्हारी धारणाएँ अक्सर उससे कहीं ज़्यादा सही होती हैं जितना तुम मानने को तैयार होते हो।" और यार, इसने मुझे अंदर तक छू लिया।

एक व्यवसायी और साथ ही मैनेजमेंट का छात्र होने के नाते, मुझे अक्सर बड़े फैसले लेने पड़ते हैं – चाहे वह अपने बिज़नेस के लिए हों या पढ़ाई से जुड़े प्रोजेक्ट्स के लिए। कभी-कभी तो अपनी बनाई हुई रणनीतियों और योजनाओं पर भी शक होने लगता है।

कितनी बार ऐसा होता है कि मेरे मन में किसी डील को लेकर, किसी नए प्रोडक्ट के बारे में, या फिर क्लास के असाइनमेंट को लेकर एक सहज विचार आता है, एक अंदरूनी आवाज जो कहती है कि 'यह सही है' या 'यह गलत है'? लेकिन फिर भी मैं उस पर पूरा भरोसा नहीं कर पाता। मैं मार्केट रिसर्च में और गहराई से उतरने लगता हूँ, दोस्तों या सलाहकारों से राय पूछने लगता हूँ, डेटा को और ज़्यादा खंगालता हूँ, और कभी-कभी तो अपने अंतर्ज्ञान के खिलाफ जाकर फैसला ले लेता हूँ। और फिर बाद में अक्सर पछतावा होता है कि काश मैंने अपने पहले विचार पर ही भरोसा किया होता।

यह सिर्फ बिज़नेस या पढ़ाई की बात नहीं है। कर्मचारियों के साथ व्यवहार में, ग्राहकों की ज़रूरतों को समझने में, या किसी छोटी सी समस्या को सुलझाने में भी, मेरा मन कुछ कहता है और मैं उसे नज़रअंदाज़ कर देता हूँ।

यह समझने में मुझे देर लगी कि यह 'धारणा' सिर्फ एक विचार नहीं है, यह मेरा व्यावसायिक अनुभव, मैनेजमेंट की पढ़ाई से मिली समझ और मेरी ऑब्ज़र्वेशन का निचोड़ है। यह मेरा अपना आंतरिक ज्ञान है, जो मेरे दोनों क्षेत्रों से मिलकर बना है।

आज से, मैं अपनी इस अंदरूनी आवाज़ पर ज़्यादा ध्यान दूँगा। मैं खुद को यह याद दिलाऊंगा कि मेरा अंतर्ज्ञान अक्सर मुझे सही रास्ता दिखाता है – चाहे वह बिज़नेस की रणनीति हो या पढ़ाई का कोई मुश्किल कॉन्सेप्ट।

गलतियाँ होंगी, बेशक होंगी, लेकिन कम से कम वे मेरी अपनी होंगी। और यही मुझे सिखाएंगी भी, कि आगे और बेहतर कैसे करना है।

खुद पर भरोसा करना एक ताकत है। और मुझे लगता है, यह ताकत अब मुझे अपनाने की ज़रूरत है, अपने बिज़नेस में भी और अपनी पढ़ाई में भी।

Madhusudan Somani.

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