#116. गोवर्धन पूजा: प्रकृति का आभार और अटूट विश्वास का पर्व ⛰️🌿

नमस्ते दोस्तों,

दिवाली की जगमगाती रोशनी और लक्ष्मी पूजन के ठीक अगले दिन एक और महत्वपूर्ण और अनूठा त्योहार मनाया जाता है—वह है गोवर्धन पूजा। यह पर्व भारतीय संस्कृति में प्रकृति के प्रति हमारे अटूट सम्मान और भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप से जुड़े एक अद्भुत प्रसंग को दर्शाता है।

अगर आपने कभी सोचा है कि दिवाली के ठीक बाद पहाड़ क्यों पूजे जाते हैं, तो आइए समझते हैं इस त्योहार का गहरा महत्व।


गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है?

गोवर्धन पूजा का इतिहास सीधा भगवान श्री कृष्ण और ब्रजवासियों की कथा से जुड़ा है।

इंद्र का अहंकार और कृष्ण का गोवर्धन उठाना

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रजवासी इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए हर साल विशाल पूजा का आयोजन करते थे, क्योंकि इंद्र वर्षा के देवता हैं और उनका मानना था कि वर्षा से ही उनकी गायों को चारा मिलता है।

जब भगवान कृष्ण छोटे थे, तो उन्होंने ब्रजवासियों से पूछा कि वे इंद्र की पूजा क्यों करते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि ब्रजवासियों का असली धर्म तो उन पहाड़ों (गोवर्धन), गायों और जंगलों की पूजा करना है, जिनसे उन्हें जीवन मिलता है। कृष्ण के कहने पर, ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा बंद कर दी और गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी।

इससे इंद्र को अहंकार आ गया और उन्होंने क्रोधित होकर ब्रज पर प्रलयकारी वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने एक हाथ की छोटी उंगली पर विशाल गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों और उनके पशुओं को सात दिनों तक मूसलाधार बारिश से बचाया।

इंद्र का अहंकार टूटा और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। तभी से, प्रकृति के रक्षक और अहंकार तोड़ने वाले भगवान कृष्ण की पूजा, जिसे गोवर्धन पूजा या अन्नकूट कहा जाता है, शुरू हुई।


गोवर्धन पूजा का महत्व: प्रकृति और पशु धन

आज के आधुनिक युग में गोवर्धन पूजा हमें दो महत्वपूर्ण बातें सिखाती है:

  1. प्रकृति के प्रति कृतज्ञता (Gratitude to Nature): यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि हमारा जीवन उन प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है जो हमें मुफ्त में मिलते हैं—हवा, पानी, पहाड़ और अन्न। हमें उनका शोषण नहीं, बल्कि उनका सम्मान और संरक्षण करना चाहिए। गोवर्धन पर्वत को पूजना, वास्तव में पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी को दर्शाता है।

  2. पशु धन का सम्मान: ब्रजवासियों के लिए गायें ही उनका जीवन थीं ('गो' का अर्थ गाय)। गोवर्धन पूजा गायों के महत्व को दर्शाती है। इस दिन गायों की पूजा की जाती है, उन्हें स्नान कराया जाता है और फूलों से सजाया जाता है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि पशु धन हमारी समृद्धि का एक अभिन्न अंग है।


अन्नकूट और परंपराएँ

गोवर्धन पूजा के दिन को अन्नकूट भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'अन्न का पहाड़'

  • अन्नकूट भोग: इस दिन विभिन्न प्रकार के अनाज, सब्ज़ियों और दालों को मिलाकर एक विशाल भोग (अन्नकूट) बनाया जाता है, जिसे गोवर्धन पर्वत के रूप में सजाया जाता है और फिर भगवान को अर्पित किया जाता है।

  • गोबर का गोवर्धन: लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। इसके बाद गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती है।

  • छप्पन भोग: कई स्थानों पर इस दिन भगवान कृष्ण को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाने की भी परंपरा है।

गोवर्धन पूजा हमें सादगी और प्रकृति से जुड़े रहने का संदेश देती है। यह दिवाली के भौतिक उल्लास के तुरंत बाद हमें आध्यात्मिक और प्राकृतिक मूल्यों की ओर मोड़ती है।


निष्कर्ष

यह गोवर्धन पूजा, आइए हम अपने जीवन में अहंकार को त्याग दें, ठीक वैसे ही जैसे इंद्र ने छोड़ा था। हम उन सभी चीज़ों के प्रति आभार व्यक्त करें जो हमारे जीवन को संभव बनाती हैं—चाहे वह हमारा अन्न हो, हमारा परिवार हो, या हमें जीवन देने वाली यह धरती।

आप सभी को गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ!

धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Sri dungargarh, Bikaner.

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