#115. पूर्णता का पीछा छोड़ो: स्वयं की आंतरिक और बाहरी पहचान ही असली लक्ष्य है

नमस्ते दोस्तों,

आजकल हर कोई पूर्णता (Perfection) के पीछे भाग रहा है। हम सोचते हैं कि अगर हमारा काम, हमारा शरीर, या हमारा जीवन 'परफेक्ट' हो जाएगा, तभी हमें खुशी और सफलता मिलेगी। हम सोशल मीडिया पर देखते हैं और खुद को लगातार दूसरों के साथ तुलना करते हुए अपूर्ण महसूस करते हैं।

लेकिन क्या यह दौड़ कभी खत्म होती है? क्या पूर्णता जैसा कुछ हासिल किया भी जा सकता है?

यह एक ऐसा विचार है जो हमें इस अंतहीन दौड़ से मुक्ति दिलाता है: पूर्णता तक पहुँचने की कोशिश मत करो। बस स्वयं की आंतरिक और बाहरी पहचान (Self-Realization) तक पहुँचने की कोशिश करो।


Perfection क्यों एक भ्रम है?

पूर्णता एक स्थिर लक्ष्य नहीं है; यह एक भागता हुआ क्षितिज है। जैसे ही आप एक 'परफेक्ट' स्टेज पर पहुँचते हैं, बाज़ार, समाज या आपकी अपनी अपेक्षाएँ एक नया, ऊँचा मानक तय कर देती हैं।

  • यह आपको रोकता है: पूर्णतावादी लोग अक्सर काम शुरू ही नहीं करते, क्योंकि उन्हें डर होता है कि वे इसे 'सही' ढंग से नहीं कर पाएंगे। वे टालमटोल करते हैं, जिससे अवसर हाथ से निकल जाते हैं।

  • यह खुशी चुराता है: जब आप केवल पूर्णता पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो आप प्रक्रिया (Process) का आनंद लेना बंद कर देते हैं। आप हर ग़लती को विफलता मानते हैं, न कि सीखने का अवसर।

हमारा लक्ष्य मानव होना चाहिए, न कि मशीन। और मानव होने का मतलब है अपूर्ण होना।


स्वयं की पहचान: आंतरिक और बाहरी सत्य

असली विकास पूर्णता में नहीं, बल्कि स्वयं की ईमानदार पहचान में है। यह पहचान दो हिस्सों में होती है:

1. आंतरिक पहचान (Inner Realization)

यह जानना कि आप कौन हैं, आपके मूल्य (Values) क्या हैं, आपकी भावनाएँ (Emotions) क्या हैं, और आप जीवन से क्या चाहते हैं।

  • अपनी शक्ति जानें: अपनी असली प्रतिभाओं और क्षमताओं को पहचानें।

  • अपनी कमजोरी स्वीकारें: यह स्वीकार करें कि आप कहाँ कमज़ोर हैं। यह जानना ही आपको सुधार करने की शक्ति देता है।

  • लक्ष्य: यह पहचान आपको सिखाती है कि आपको दूसरों को प्रभावित करने के लिए काम नहीं करना है, बल्कि अपनी अंतरात्मा की आवाज़ के अनुसार जीना है।

2. बाहरी पहचान (Outer Realization)

यह जानना कि दुनिया में आपका स्थान क्या है, आप दूसरों को क्या दे सकते हैं, और आपके कर्मों का बाहरी दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।

  • अपनी ज़िम्मेदारी: यह पहचान आपको सिखाती है कि आपका काम केवल आपके लिए नहीं है, बल्कि आपके परिवार, समाज और दुनिया के लिए भी है।

  • सेवा भाव: जब आप अपने काम को पूर्णता के लिए नहीं, बल्कि सेवा के भाव से करते हैं, तो आपका काम अपने आप सार्थक हो जाता है।


निष्कर्ष

अपनी ऊर्जा को एक ऐसे लक्ष्य (Perfection) को पाने में बर्बाद न करें जिसे पाया नहीं जा सकता। इसके बजाय, अपनी सारी ऊर्जा खुद को जानने में लगाएँ।

हर दिन अपनी आंतरिक आवाज़ को सुनें। अपनी अपूर्णता को स्वीकार करें और अपने काम को प्यार से करें। जब आप खुद को सच्चे दिल से जान लेते हैं, तो आपका जीवन अपने आप सार्थक और आनंदमय हो जाता है।

क्योंकि सबसे बड़ी सफलता तब मिलती है जब आप परफेक्ट बनना छोड़ देते हैं और खुद बनना शुरू करते हैं।

धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Sri Dungargarh, Bikaner.

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