#113. गीता मनन: कर्म में कुशलता ही योग है - समत्व और बुद्धि योग (अध्याय 2, श्लोक 48-53)

नमस्ते दोस्तों,

भगवद गीता के दूसरे अध्याय का यह भाग, जिसे कर्मयोग का हृदय माना जाता है, हमें बताता है कि जीवन में काम कैसे करना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण अब अर्जुन को उस सर्वोच्च मानसिक अवस्था की ओर ले जा रहे हैं जहाँ काम करने के बावजूद मन शांत रहता है।

श्लोक 48 से 53 हमें सिखाते हैं कि समत्व (Equanimity) और बुद्धि योग (Focused Intellect) कैसे सफलता और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।


श्लोक 48: समत्वम् योग उच्यते (समता ही योग है)

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।। (48)

अर्थ: हे धनंजय (अर्जुन), तुम आसक्ति (मोह) को त्यागकर, सफलता और असफलता में समान भाव रखकर, योग में स्थित होकर कर्म करो। इसी समत्व (समता) को योग कहते हैं।

आज के लिए सार: यह कर्मयोग का मूल सिद्धांत है। कृष्ण कहते हैं कि काम करो, पर आसक्ति (फलों के प्रति लगाव) छोड़कर।

  • सफलता और असफलता में समभाव: आज के तनावपूर्ण जीवन में, हमारी खुशी पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करती है कि हमें सफलता मिली या नहीं। कृष्ण कहते हैं कि एक सच्चा योगी या कुशल लीडर वह है जो परिणाम (सिद्धी) और परिणाम न मिलने (असिद्धी) दोनों में विचलित नहीं होता।

  • समता ही योग है: योग का अर्थ किसी विशेष आसन या क्रिया से नहीं, बल्कि मन की समता से है। यह मन की वह अवस्था है जहाँ आप बाहरी उथल-पुथल के बावजूद शांत बने रहते हैं।


श्लोक 49-51: आसक्ति से कर्म बाँधता है

दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय। बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः।। (49)

अर्थ: हे धनंजय, आसक्ति के साथ किया गया कर्म (सकाम कर्म) बुद्धि योग (समता युक्त कर्म) की तुलना में बहुत ही निम्न है। इसलिए तुम बुद्धि में ही शरण लो। फल की इच्छा रखने वाले अत्यंत दीन (कृपण) होते हैं।

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।। (50)

अर्थ: बुद्धि से युक्त पुरुष इस लोक में पुण्य और पाप दोनों को त्याग देता है। इसलिए तुम योग में लग जाओ। यह योग ही कर्मों में कुशलता है।

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः। जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।। (51)

अर्थ: बुद्धि योग से युक्त ज्ञानीजन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्यागकर जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और परम आनंदमय पद (मोक्ष) को प्राप्त होते हैं।

आज के लिए सार: कृष्ण यहाँ बताते हैं कि फल की इच्छा ही हमें कृपण (दीन या दुखी) बनाती है।

  • निम्न कर्म बनाम उच्च कर्म: फल की इच्छा से किया गया कोई भी काम (चाहे वह अच्छा हो या बुरा) आपको बांधता है। जबकि बुद्धि योग (यानी, आसक्ति रहित कर्म) पाप और पुण्य दोनों के बंधन को तोड़ देता है।

  • योगः कर्मसु कौशलम् (Yoga is excellence in action): यह गीता का सबसे व्यावहारिक सूत्र है। जीवन का लक्ष्य काम से भागना नहीं है, बल्कि अपने काम को इतनी कुशलता और एकाग्रता से करना है कि आप उसमें पूरी तरह खो जाएँ—यही सच्ची लीडरशिप और परफॉर्मेंस है।


श्लोक 52-53: बुद्धि योग से भ्रम का अंत

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति। तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।। (52)

अर्थ: जिस समय तुम्हारी बुद्धि मोह के दलदल को पूरी तरह पार कर जाएगी, उस समय तुम सुने हुए और सुनने योग्य सभी चीजों के प्रति वैराग्य (उदासीनता) को प्राप्त हो जाओगे।

श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला। समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि।। (53)

अर्थ: अनेक प्रकार के वचनों (ज्ञान) से विचलित हुई तुम्हारी बुद्धि जब समाधि (स्थिर अवस्था) में अचल और स्थिर हो जाएगी, तब तुम योग को प्राप्त हो जाओगे।

आज के लिए सार: ये श्लोक हमें सूचना के अतिभार (Information Overload) से मुक्ति दिलाते हैं।

  • मोह का दलदल: आज हम सूचनाओं के दलदल में फंसे हैं। हर तरफ से सलाह, ज्ञान, और अपेक्षाएँ आ रही हैं। कृष्ण कहते हैं कि जब आपकी बुद्धि मोह (भ्रम या आसक्ति) के दलदल को पार कर लेती है, तो आप इन सभी बाहरी शोर से वैरागी हो जाते हैं।

  • अचल बुद्धि: जब आपका मन सोशल मीडिया, बाहरी आलोचनाओं, या सफलता की चमक से विचलित होना बंद कर देता है, और वह एक लक्ष्य पर स्थिर हो जाता है—तभी आप योग (समता और कुशलता) को प्राप्त करते हैं।


निष्कर्ष

कर्मयोग हमें सिखाता है कि जीवन की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि हम क्या करते हैं, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि हम उसे किस मानसिक स्थिति से करते हैं।

अगर आप अपने जीवन में कुशलता, शांति और स्थायी सफलता चाहते हैं, तो फल की चिंता छोड़िए। अपने वर्तमान कार्य में पूरी लगन और समता के साथ जुट जाइए। क्योंकि आपका सर्वश्रेष्ठ प्रयास ही आपकी असली पूजा है।

धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Ludhiana, Punjab.

Comments