#111. बुद्धिमानी की राह पर: "मैं अभी तक बुद्धिमान नहीं हूँ" - यह स्वीकारोक्ति ही पहली सीढ़ी है

नमस्ते दोस्तों,

हम सभी अपनी ज़िंदगी में एक मुकाम पर पहुँचना चाहते हैं जहाँ हम शांत, समझदार और तर्कसंगत हों। हम हर चुनौती का सामना बुद्धिमानी से करना चाहते हैं, बिना किसी भावनात्मक भटकाव के। लेकिन क्या हम वहाँ पहुँच चुके हैं?

यह एक ऐसा विचार है जो हमें आत्म-ईमानदारी (Self-Honesty) का महत्व समझाता है: "उसने समय के साथ बुद्धिमान और तर्कसंगत होने की उम्मीद की थी, पर हाय! हाय! उसे खुद से यह स्वीकार करना होगा कि वह अभी तक बुद्धिमान नहीं हुई है।"

यह स्वीकारोक्ति किसी हार की निशानी नहीं है; बल्कि यह विकास की शुरुआत है।


उम्मीदें और वास्तविकता का द्वंद्व

हमारा मन अक्सर हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम अपने अनुभवों के कारण अब परिपक्व (Mature) हो चुके हैं। हम सोचते हैं कि हमने अतीत की ग़लतियों से सीख लिया है और अब हम तर्कसंगत निर्णय लेंगे।

  • उम्मीद: हमें लगता है कि अब हम किसी छोटी बात पर नाराज़ नहीं होंगे, किसी की आलोचना से प्रभावित नहीं होंगे, और हमेशा सही चुनाव करेंगे।

  • वास्तविकता: लेकिन फिर अचानक कोई तनावपूर्ण स्थिति आती है, और हम पाते हैं कि हम वही पुरानी भावनात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं—हम ग़ुस्सा कर रहे हैं, अति-प्रतिक्रिया (Overreacting) कर रहे हैं, या मूर्खतापूर्ण फैसले ले रहे हैं।

यह एहसास कि "मैं अभी तक वहाँ नहीं पहुँचा हूँ" एक कड़वा घूंट होता है, पर यह ज़रूरी है।


स्वीकारोक्ति की शक्ति 💪

जब आप खुद से कहते हैं, "मैं अभी तक बुद्धिमान नहीं हूँ," तो आप दो शक्तिशाली काम करते हैं:

  1. ईमानदारी: आप अपने अहंकार (Ego) को किनारे करते हैं। अहंकार ही हमें यह मानने से रोकता है कि हम अपूर्ण (Imperfect) हैं। यह स्वीकारोक्ति आपको सच्चाई के करीब लाती है।

  2. सीखने की शुरुआत: अगर आप मानते हैं कि आप पहले से ही बुद्धिमान हैं, तो आप सीखना बंद कर देते हैं। लेकिन जब आप अपनी अपूर्णता को स्वीकार करते हैं, तो आपके लिए विकास के दरवाज़े खुल जाते हैं। आप खुद से पूछते हैं: मैं कहाँ ग़लत था? मैं बेहतर कैसे हो सकता हूँ?

बुद्धिमानी कोई ऐसी मंज़िल नहीं है जिस पर एक दिन में पहुँचा जा सके। यह एक लंबी यात्रा है जिसमें हर दिन सीखना, ग़लतियाँ करना और फिर उनसे बेहतर होना शामिल है।


निष्कर्ष

अगर आज भी आपको लगता है कि आप अक्सर भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया देते हैं, या आप अभी भी वह शांत, तर्कसंगत व्यक्ति नहीं बन पाए हैं जिसकी आपने कल्पना की थी, तो निराश न हों।

बस खुद से ईमानदार रहें। अपनी अपूर्णता को स्वीकार करें। यही स्वीकारोक्ति आपको वास्तविक रूप से बुद्धिमान बनने के रास्ते पर पहला कदम उठाने की हिम्मत देगी।

याद रखें, बुद्धिमानी की यात्रा का सबसे बड़ा सबक यह जानना है कि आप अभी तक सब कुछ नहीं जानते हैं।

धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Ludhiana, Punjab.

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