नमस्ते दोस्तों,
गीता मनन की हमारी यात्रा में, हमने देखा कि किस तरह अर्जुन अपने सामने खड़े परिजनों को देखकर शोक में डूब गए थे। उनका मन मोह और दुःख से भर गया था। लेकिन अब, भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के शोक का सीधा जवाब देते हुए उन्हें जीवन के सबसे बड़े सत्य से परिचित कराते हैं – आत्मा की अमरता।
ये श्लोक हमें सिखाते हैं कि हम जिसे जीवन और मृत्यु का अंत समझते हैं, वह केवल एक बदलाव है, एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना।
श्लोक 19 & 20: न कोई मारता है, न कोई मरता है
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।। (19)
अर्थ: जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है, और जो इसे मरा हुआ मानता है, वे दोनों ही अज्ञानी हैं। क्योंकि यह आत्मा न तो किसी को मारती है और न ही किसी के द्वारा मारी जा सकती है।
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।। (20)
अर्थ: यह आत्मा न कभी जन्म लेती है और न कभी मरती है। यह कभी थी, है और रहेगी। यह अजन्मी, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जाती।
ये श्लोक अर्जुन के सबसे बड़े भ्रम को दूर करते हैं। अर्जुन सोच रहे थे कि वह अपने संबंधियों को मार डालेंगे, लेकिन कृष्ण उन्हें समझाते हैं कि यह एक गलत धारणा है। हमारी आत्मा न कभी किसी को मार सकती है और न ही कोई उसे मार सकता है। यह हमेशा से थी, हमेशा है और हमेशा रहेगी। हमारा असली स्वरूप यह आत्मा है, जो जन्म और मृत्यु के चक्र से परे है।
श्लोक 21-23: एक शरीर से दूसरे में
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्। कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्।। (21)
अर्थ: हे पार्थ, जो व्यक्ति आत्मा को अविनाशी, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह भला कैसे किसी को मार सकता है या मरवा सकता है?
यह प्रश्न कृष्ण अर्जुन को यह एहसास कराने के लिए पूछते हैं कि यदि आत्मा अमर है, तो युद्ध के परिणाम स्वरूप होने वाली मृत्यु केवल शरीर की होगी, आत्मा की नहीं।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।। (22)
अर्थ: जिस प्रकार एक व्यक्ति पुराने और फटे वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने और अनुपयोगी शरीर को छोड़कर नए शरीर धारण करती है।
यह श्लोक आत्मा के एक शरीर से दूसरे में जाने की प्रक्रिया को एक सरल और सुंदर उदाहरण से समझाता है। जैसे हम अपने पुराने कपड़े बदलते हैं, वैसे ही आत्मा भी शरीर बदलती है।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।। (23)
अर्थ: यह आत्मा किसी भी शस्त्र से काटी नहीं जा सकती, इसे आग जला नहीं सकती, जल इसे भिगो नहीं सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।
यह श्लोक आत्मा की अविनाशी प्रकृति को और भी स्पष्ट करता है। दुनिया की कोई भी भौतिक शक्ति हमारे वास्तविक स्वरूप को नष्ट नहीं कर सकती।
श्लोक 24 & 25: आत्मा का वास्तविक स्वरूप
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च। नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।। (24)
अर्थ: यह आत्मा काटी नहीं जा सकती, जलाई नहीं जा सकती, भिगोई नहीं जा सकती और सुखाई भी नहीं जा सकती। यह नित्य है, सर्वव्यापी है, स्थिर है, अचल है और सनातन है।
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते। तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।। (25)
अर्थ: यह आत्मा अप्रत्यक्ष है, इसे मन से सोचा नहीं जा सकता और यह अविकारी है। इसलिए, इस सत्य को जानकर तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।
इन श्लोकों में कृष्ण आत्मा के सभी गुणों का सार देते हैं। वह नित्य, सर्वव्यापी और अविकारी है। जब अर्जुन को यह समझ आ जाता है, तो उनका शोक व्यर्थ हो जाता है।
निष्कर्ष
यह ज्ञान सिर्फ़ अर्जुन के लिए नहीं था, बल्कि हम सबके लिए है। हम भी अक्सर रिश्तों के टूटने, पैसे के नुकसान या किसी प्रियजन के खोने पर गहरे शोक में डूब जाते हैं। लेकिन गीता हमें सिखाती है कि हम जिस चीज़ के लिए शोक करते हैं, वह शरीर और भौतिक संसार है, जो अस्थायी है।
हमारी सच्ची पहचान हमारी आत्मा है, जो अमर और अविनाशी है। जब हम इस सत्य को समझ जाते हैं, तो हम शोक से मुक्त हो जाते हैं और जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देखना शुरू करते हैं। यदि आप भी अपने मन की उलझनों से जूझ रहे हैं, तो भगवद गीता में आपको समाधान मिल सकता है।
धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Ludhiana, Punjab.
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