नमस्ते दोस्तों,
आज एक ऐसी बात पर बात करते हैं जो हमें हमारी असली पहचान दिखाती है। अक्सर हम अपनी ज़िंदगी में होने वाली घटनाओं के लिए दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन क्या कभी हमने यह सोचा है कि उन घटनाओं पर हमारी प्रतिक्रिया (reaction) क्यों वैसी ही होती है?
यदि आप गर्म चाय का कप हाथ में लिए खड़े हैं और कोई आपको धक्का दे देता है तो क्या होता है? आपके कप से चाय छलक जाती है।
अब आपसे कोई पूछे कि आपके कप से चाय क्यों छलकी? आपका उत्तर होगा कि अमुक ने मुझे धक्का दिया- इसलिए। जबकि वास्तविकता यह है कि आपके कप में चाय थी इसलिए छलकी।
आपके कप से वही छलकेगा जो उसमें होगा। इसी तरह जब जीवन में हमें लोगों के व्यवहार से जब धक्के लगते हैं तो उस समय हमारी वास्तविकता ही छलकती है। आपका सच उस समय तक सामने नहीं आता जब तक आपको धक्का न लगे। देखना यह है कि जब आपको धक्का लगा तो क्या छलकेगा - धैर्य, मौन, कृतज्ञता, स्वाभिमान, निश्चितता, मानवता, गरिमा या क्रोध, कड़वाहट, पागलपन, ईर्ष्या, द्वेष, या घृणा-यह निर्णय आपको करना है।
यह विचार हमें सिखाता है कि हमारी प्रतिक्रियाएँ हमारे अंदर क्या है, इसका प्रतिबिंब होती हैं।
भीतरी पात्र की पहचान
जीवन में 'धक्के' कई रूप ले सकते हैं - किसी की कठोर बात, कोई असफलता, किसी का अन्यायपूर्ण व्यवहार, या कोई अनपेक्षित घटना। जब ऐसा होता है, तो हमारी सहज प्रतिक्रिया ही हमारी 'वास्तविकता' को सामने लाती है।
अगर हमारे अंदर धैर्य, शांति और समझदारी है, तो धक्का लगने पर भी वही छलकेगा। हम शांत रहेंगे, स्थिति को समझेंगे और अपनी गरिमा बनाए रखेंगे। लेकिन अगर हमारे अंदर क्रोध, कड़वाहट और नकारात्मकता भरी है, तो धक्का लगने पर यही सब बाहर आएगा। हम तुरंत गुस्सा होंगे, बुरा-भला कहेंगे और स्थिति को और ख़राब कर देंगे।
निर्णय हमारा, चुनाव हमारा
यह समझना बहुत ज़रूरी है कि धक्का देना शायद दूसरे व्यक्ति के हाथ में हो, लेकिन हमारे कप से क्या छलकेगा, यह पूरी तरह से हमारे हाथ में है। यह हमारा निर्णय है कि हम अपने अंदर किस तरह की 'चाय' भरते हैं।
क्या हम अपने मन को सकारात्मक विचारों, दया, करुणा और धैर्य से भर रहे हैं? या फिर हम उसे क्रोध, ईर्ष्या और नफरत से भर रहे हैं?
हर दिन हम जो भी अनुभव करते हैं, जो भी पढ़ते हैं, जो भी सुनते हैं, और जिस तरह के लोगों के साथ समय बिताते हैं - वह सब हमारे अंदर के 'पात्र' को भरता है।
निष्कर्ष: खुद को बेहतर बनाएं
तो दोस्तों, अगली बार जब कोई आपको धक्का दे, तो रुकें और देखें कि आपके अंदर से क्या छलक रहा है। यह आत्म-निरीक्षण (self-reflection) का एक बेहतरीन मौका है।
अगर आप पाते हैं कि आपमें से कुछ ऐसा छलक रहा है जो आपको पसंद नहीं है, तो निराश न हों। यह एक संकेत है कि अब समय है कि आप अपने 'भीतरी पात्र' को बदलना शुरू करें। अपने अंदर धैर्य और शांति भरें, ताकि जब भी आपको धक्का लगे, तो आपका सच ही आपकी सबसे बड़ी सुंदरता बन जाए।
धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Ludhiana, Punjab.
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