#34. अगर जीवन एक खेल होता

नमस्ते दोस्तों,

आज एक ऐसे सवाल पर बात करते हैं जो हमें अपनी ज़िंदगी को एक नए नज़रिए से देखने के लिए प्रेरित कर सकता है: अगर ज़िंदगी एक खेल होती, तो क्या आप खुद को जीतते हुए मानते, या हारते हुए?

यह सवाल जितना सरल लगता है, उतना है नहीं। हमारा जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि हम 'जीतना' और 'हारना' किसे मानते हैं। क्या जीत का मतलब सिर्फ़ पैसा, शोहरत, या सफलता है? या क्या हार का मतलब सिर्फ़ असफलता और निराशा है?

मेरा मानना है कि ज़िंदगी के इस खेल में जीत और हार की परिभाषा बहुत गहरी है।

जीतना क्या है?

ज़्यादातर लोग जीत को बड़ी उपलब्धियों से जोड़ते हैं। एक अच्छी नौकरी मिलना, एक बड़ा घर खरीदना, या एक सफल व्यापार खड़ा करना। ये सब यकीनन जीत के हिस्से हैं, लेकिन क्या बस इतना ही काफ़ी है?

मेरे लिए, ज़िंदगी के इस खेल में जीतना है:

  • खुश रहना: जब आप छोटी-छोटी चीज़ों में खुशी ढूंढ पाते हैं, जब आप खुद से संतुष्ट होते हैं, तब आप जीत रहे होते हैं।

  • खुद को बेहतर बनाना: जब आप अपनी पिछली गलतियों से सीखते हैं और हर दिन एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करते हैं, तब आप जीत रहे होते हैं।

  • रिश्ते निभाना: जब आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ प्यार और सम्मान से भरे रिश्ते बनाते हैं, तब आप जीत रहे होते हैं।

  • अपने डर का सामना करना: जब आप अपने डर से भागने के बजाय उसका सामना करने की हिम्मत दिखाते हैं, तब आप जीत रहे होते हैं।

हारना क्या है?

हारना सिर्फ़ असफल होना नहीं है। इस खेल में हारना है:

  • उम्मीद छोड़ देना: जब आप मुश्किलों से डरकर कोशिश करना छोड़ देते हैं, तब आप हार रहे होते हैं।

  • सकारात्मकता खो देना: जब आप हर बात में सिर्फ़ बुराई ढूंढते हैं और खुश रहने की इच्छा छोड़ देते हैं, तब आप हार रहे होते हैं।

  • जीना छोड़ देना: जब आप ज़िंदगी को बस गुज़ारते हैं, नए अनुभव लेने से डरते हैं, और खुद को एक ही जगह पर रोक लेते हैं, तब आप हार रहे होते हैं।

  • नकारात्मकता से घिरे रहना: जब आप नकारात्मक विचारों और नकारात्मक लोगों को अपने जीवन पर हावी होने देते हैं, तब आप हार रहे होते हैं।

एक अच्छा उदाहरण महान क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर का है। उनकी ज़िंदगी भी एक खेल की तरह थी, जिसमें कई उतार-चढ़ाव आए। उन्होंने कई मैचों में हार का सामना किया, कई बार चोटें लगीं, और कई बार आलोचना भी हुई। अगर वे हर हार को अंत मानकर बैठ जाते, तो शायद वे कभी महान नहीं बन पाते। लेकिन उन्होंने हर बार हार से सीखा, अपने खेल को और बेहतर बनाया, और सबसे बढ़कर, उन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। यही वजह है कि आज उन्हें दुनिया का महानतम खिलाड़ी माना जाता है। उनकी असली जीत सिर्फ़ रनों या शतकों में नहीं थी, बल्कि उनकी हार न मानने वाली ज़िद में थी।

आप कहाँ खड़े हैं?

तो, अब फिर से उस सवाल पर आते हैं: अगर ज़िंदगी एक खेल है, तो आप कहाँ खड़े हैं? क्या आप सिर्फ़ दूसरों की बनाई हुई जीत और हार की परिभाषाओं पर चल रहे हैं, या आपने अपनी खुद की परिभाषाएं बनाई हैं?

मेरे लिए, ज़िंदगी के खेल में सबसे बड़ी जीत यह है कि आप हर दिन कुछ नया सीखें, अपने रिश्तों को संवारें, और सबसे बढ़कर, हर हाल में मुस्कुराना न भूलें।

क्योंकि अंत में, यह सिर्फ़ खेल जीतने के बारे में नहीं है, बल्कि यह खेल को अच्छे से खेलने के बारे में है।

धन्यवाद,
Madhusudan Somani,
Ludhiana, Punjab.

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